क्या तू रावतों की शान में कायरता का कलंक लगाना चाहता है.
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और जब वह यह भी कहता है कि अनीश्वरवाद हर देश और हर काल के लिए नहीं है और उसका प्रचार विशेष सामाजिक परिस्थिति में ही होता है, तो फिर इसे सदा के लिए मान्य करके मार्क् सवाद पर निरीश्वरवाद का कलंक लगाना कहाँ तक जायज है?